मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

What is havan? (हवन क्या होता है?)

 “अहं यज्ञ:”

havan


इस समग्र सृष्टि के क्रियाकलाप ‘यज्ञ’ रुपी धुरी के चारों ओर ही चल रहे हैं। ऋषियों ने ‘अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः’ (अथर्ववेद १।१५।१४) कहकर यज्ञ को भुवन की इस जगत की सृष्टि का आधार बिंदु कहा है। स्वयं योगिराज भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है –

                          सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः ।

                          अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ।। – (३/१०)

अर्थात- “प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उनसे कहा की तुम लोग इस यज्ञ कर्म के द्वारा वृद्धि को प्राप्त करो और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो।” यज्ञ भारतीय संस्कृति के मनीषी ऋषियों द्वारा सारी वसुंधरा को दी गई ऐसी महत्वपूर्ण देन है, जिसे सर्वाधिक एवं समग्र पर्यावरण केंद्र इको सिस्टम के ठीक बने रहने का आधार माना जा सकता है। 

सनातन वैदिक धर्मं में यज्ञ की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। रामायण एवं महाभारत में इसे अनेक राजाओं का वर्णन मिलता है, जिन्होंने अनेक यज्ञ किये हैं। शास्त्रों के अनुसार यज्ञ की रचना सर्वप्रथम परमपिता ब्रह्मा ने की थी। यज्ञ का सम्पूर्ण वर्णन वेदों में मिलता है यज्ञ का दूसरा नाम अग्निहोत्र है। अर्थात जल, पृथ्वी, वायु आदि की शुद्धि के लिए डाली गयी आहुतियां।


यज्ञ से देवी-देवताओं को प्रसन्न किया जा सकता है साथ ही साथ मनचाहा फल भी प्राप्त किया जा सकता है। वैदिक धर्म ग्रंथों में अग्नि को ईश्वर का मुख माना गया है। इसमें जो कुछ आहुतियाँ डाली जाती हैं, वास्तव में वह ब्रह्मभोज है। यज्ञ के मुख में आहुति डालना, साक्षात परमात्मा को भोजन करने के सामान माना जाता है।

हवन, यज्ञ का एक छोटा प्रकार है। किसी भी पूजा अथवा जप आदि के बाद अग्नि में दी जाने वाली आहुति की प्रक्रिया हवन के रूप में प्रचलित है। यज्ञ किसी खास उद्देश्य से देवी-देवता विशेष को दी जाने वाली आहुति है। इसमें देवता, आहुति, वेद मंत्र, ऋत्विक, दक्षिणा अनिवार्य रूप से होते है। हवन सनातन वैदिक हिन्दू धर्मं में शुद्धिकरण का एक कर्मकाण्ड है।

यज्ञ भारत एक प्राचीन वैदिक विज्ञान है। इसमें वृक्षों एवं जड़ी-बूटियों की समिधाएँ उपयोग में ली जाती हैं, किस उद्देश्य के लिए किस प्रकार की सामग्री डाली जाये, इसका भी एक सम्पूर्ण विज्ञान है। उन सभी सामग्रियों केसम्मिश्रण से एक विशेष गुण तैयार होताहै, जो जलने पर वायुमंडल में एक विशिष्ट प्रभाव पैदा करता है। वेदोक्त मन्त्रों के उच्चारण की शक्ति से उस प्रभाव में वृद्धि अति तीव्र हो जाती है। यज्ञ का प्रयोग अलौकिक सुख-समृद्धि, वर्षा, आरोग्य एवं शांति के लिए बड़े यज्ञ की आवश्यकता होती है, लेकिन छोटे हवन भी अपनी सीमा के भीतर हमें लाभान्वित करते है। 

havan kund

वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं- १) ब्रह्मयज्ञ, २) देवयज्ञ, ३) पितृयज्ञ ४) वैश्वदेव यज्ञ ५) अतिथि यज्ञ। उक्त पांच यज्ञों को पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार दिया गया है। वेदज्ञ सार को पकड़ते हैं विस्तार को नहीं। उक्त पांच यज्ञों के ही पुराणों में अनेक प्रकार और उप-प्रकार हो गए हैं जिनके अलग-अलग नाम हैं और जिन्हें करने की विधियाँ भी अलग-अलग हैं किन्तु मुख्यतः यह पांच यज्ञ ही माने गये हैं।


।।ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं तन्न आ सुव।। – यजुर्वेदः

भावार्थ: हे ईश्वर, हमारे सारे दुर्गुणों को दूर कर दो और जो अच्छे गुण, कर्म और स्वभाव हैं, वे हमें प्रदान करो।


‘यज्ञ’ का अर्थ केवल आग में घी डालकर मंत्र पढ़ना नहीं होता। यज्ञ का अर्थ है- शुभ कर्म। श्रेष्ठ कर्म। सत्कर्म। वेदसम्मत कर्म। सकारात्मक भाव से ईश्वर-प्रकृति तत्वों से किये गए आह्वान से जीवन की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है। मांगो, विश्वास करो और फिर पा लो। यही है यज्ञ का रहस्य।


यह तो था यज्ञ क्या है? अब बात करते हैं यज्ञ की वैज्ञानिकता पर जो हर व्यक्ति का प्रश्न रहता है की यज्ञ से धुँआ होता है, वायु प्रदूषण बढ़ता है और ऑक्सीजन भी खर्च होती है। क्योकि कोई चीज तभी जलती है जब उसे ऑक्सीजन मिले। तो इसका उत्तर यह है की यज्ञ से प्रदूषण कदापि नही होता। जितना ऑक्सीजन खर्च होता है उससे कहीं ज्यादा बढ़ता है। और प्रदूषण दूर होता है।

यज्ञ पूर्णतः वैज्ञानिक प्रक्रिया है। यज्ञो वै श्रेष्ठतम कर्म। यज्ञ से श्रेष्ठ कोई कार्य नही है। यज्ञ केवल कर्मकाण्ड ही नही बल्कि चिकित्सा पद्धति भी है। यज्ञ करते समय जो हम विभिन्न मंत्रोच्चार करते हैं उनका हमारे मन, मस्तिष्क व आत्मा पर विशेष प्रभाव होता है। साथ ही साथ वातावरण भी शुद्ध होता है। यज्ञ को हवि भी कहते हैं जिसका अर्थ है विष को हरने वाला।

विज्ञान के सिद्धान्त के अनुसार कोई भी पदार्थ नष्ट नही होता, हां उसका रूप बदला जा सकता है।

द्रव्यमान संरक्षण नियम - द्रव्यमान को रासायनिक प्रतिक्रिया में बनाया या नष्ट नहीं किया जा सकता है।

हवन सामग्री गाय का देशी घी आदि जो हम अग्नि पर डालते है हवन के लिए वे वास्तव में औषधियां हैं, जलने से नष्ट नही होतीं बल्कि दूसरे रूप में परिवर्तित होती हैं और सूक्ष्म रूप में हमे प्राप्त होती हैं।

जब प्राचीन काल में एलोपैथ नही था तो केवल आयुर्वेद ही था। आयुर्वेद में इन्ही वनस्पतियों से ही चिकित्सा की जाती थी।

हवन सामग्री में जो औषधियां हैं उनमे १. कीटाणुनाशक (Disinfectant) २. सुगंधि वर्धक (Perfumer) ३. स्वास्थ्यवर्धक (medicinal action property) ४. पौष्टिक (Nutritious) ५. ऑक्सीजन वर्धक (Oxygen booster)

आदि गुण होते हैं।

जब ये औषधियां हवन कुण्ड में जलायी जाती हैं तो ये परमाणु रूप मे श्वास के माध्यम से एक नही बल्कि अनेको जिव जंतुओं तक पहुचती हैं। जिससे परोपकार भी होता है। यज्ञकुण्ड मात्र तांबे, चांदी का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। यदि कुण्ड इन धातुओ का प्रयोग करना संभव न हो तो स्वयं मिट्टी से कुण्ड का निर्माण करके प्रयोग करना उपयुक्त रहता है। लोहे के कुण्ड का प्रयोग करने से यज्ञ का फल शून्य रहता है।

यज्ञ में होने वाली रासायनिक क्रियाएँ निम्न हैं-

१. ज्वलन / दहन (combustion) - ऑक्सीजन के साथ एक पदार्थ का तेजी से रासायनिक संयोजन, जिसमें गर्मी और प्रकाश का उत्पादन शामिल है।

२. ऊर्ध्वपातन (sublimation) - द्रव अवस्था से गुज़रते हुए बिना किसी ठोस पदार्थ से सीधे गैस की अवस्था में परिवर्तन का निर्माण होता है।

३. धूनी (Fumigation) – यह कीट नियंत्रण की एक विधि है जो विशेष रूप से कीटों को कीटाणुरहित करने या नष्ट करने के उद्देश्य से एक क्षेत्र को पूरी तरह से धुएं, वाष्प या गैस से भर देती है।

४. औटना (Volatilization) – यह एक प्रक्रिया है जिसके तहत एक घुलित नमूना वाष्पीकृत हो जाता है।

ये सभी रासायनिक क्रियाएँ हमारे लिए लाभकारी ही हैं।

इनमे ज्वलन / दहन (combustion) अभिक्रिया के दौरान गाय का घी जिसमे लगभग ८% संतृप्त वसायुक्त अम्ल (saturated fatty acids) तथा ट्राइग्लिसराइड्स, डिग्लिसराइड्स, मोनोग्लिसराइड) ज्वलन को तेज करता है जिससे पूर्ण दहन (complete combustion) हो सके। वसायुक्त अम्ल (fatty acid) के combustion के दौरान CO2 और H2O निकलती है। पूर्ण दहन (complete combustion) से CO2 भी बहुत कम हो जाता है। Glycerol के combustion में Pyruvic acid और Glyoxal (C2H2O2) बनता है। Pyruvic acid हमारे metabolism को बढ़ाता है। और Glyoxal बैक्टेरिया को ख़त्म करता है।

इनके आलावा combustion के दौरान प्रतिक्रियाओं में उत्पादित हाइड्रोकार्बन फिर से धीमी गति से दहन से गुजरते हैं और परिणामस्वरूप मिथाइल और एथिल अल्कोहल, फॉर्मलाडेहाइड, एसिटालडिहाइड, फॉर्मिक एसिड और एसिटिक एसिड बनते हैं। जोकि वायु में मिलकर सुगन्धित वातावरण बनाते हैं साथ ही साथ हानिकारक विषाणुओं पर प्रतिक्रिया करते है और जीवनोपयोगी जीवाणुओं पर अनुकूल प्रभाव डालते है। यहाँ तक कि किसी भी प्रकार के संक्रामक एवं असंक्रामक विषाणुओं को भी समाप्त करने की क्षमता यज्ञ में है।

आसपास के वातावरण में जब सभी वाष्पशील पदार्थ विसरित होते हैं, तो इन्हें आगे सूर्य के प्रकाश में फोटोकैमिकल प्रतिक्रियाओं के अधीन किया जाता है। यही कारण हो सकता है कि यह सिफारिश की गई है कि यज्ञ को तेज धूप की उपस्थिति में किया जाना चाहिए। ये परिवर्तन अल्ट्रा-वायलेट और अन्य लघु तरंग दैर्ध्य क्षेत्रों में होते हैं। धूमन के उत्पाद इस प्रकार फोटोकैमिकल अपघटन, ऑक्सीकरण और कटौती करते हैं। कुछ हद तक C02 को भी फॉर्मलाडेहाइड के रूप में कम किया जाता है यज्ञ ही मात्र वह प्रक्रिया है जिसमे जितनी ऑक्सीजन खर्च होती है उससे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है। क्योंकी इसमें कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के साथ-साथ वाष्प (H2O) भी बनती है। यह एक प्रतिवर्ती (reversible) क्रिया है - 

CO2 + H2O (g) +112000 cal ↔ HCHO (formaldehyde) + O2 (Oxygen)

अतः प्रायोगिक तौर पर यह सिद्ध किया गया है कि इस प्रकार यज्ञ करने से वातावरण में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है। साथ ही साथ अन्य रासायनिक क्रियाओं से बने धुंए से पर्यावरण शुद्ध होता है। एवं हमें स्वास्थ्य लाभ भी होता है। साथ ही अग्निहोत्र का अवशेष भस्म हमारी मिटटी की उर्वरकता क्षमता को बढाती है। अतः यज्ञ से पृथ्वी को लाभ ही लाभ है।


निवेदन:- आज सारी पृथ्वी कोरोना और न जाने कौन कौन सी विषाक्त बीमारियों से लड़ रही है। न जाने कितने साथी इन बीमारियों का ग्रास बन चके हैं और निरंतर बनते ही जा रहे है। हम सभी इस महामारी के समय में धैर्य बनाकर एक दुसरे का साथ देकर, स्वयं को और अपने वातावरण को पवित्र रखकर ही इससे सुरक्षित रह सकते है। यह सब बाते हमारे वेद-पुराण प्राचीन काल से कहते आ रहे हैं, इसीलिए आज समय आ गया है फिर से प्राचीन संस्कृति को सीखने का और एक दूसरे के साथ ज्ञान को बांट कर लाभान्वित होने का। यह भारत की संस्कृति है जो जनकल्याण के लिए है। 


                        सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।

                        सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।

(अर्थात- सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।


अतः हमें प्रतिदिन 3 पहर सुबह, दोपहर और शाम को हवन करना चाहिए। लेकिन आज किसी के पास इतना समय नहीं है तो इस संदर्भ में हमें समयानुसार क्रमशः 3 दिन, 7 दिन, 15 दिन, 21 दिन अथवा माह में केवल एक बार हवन अवश्य करना चाहिए। यूं तो वैदिक विधान में हवन के अनेकों मंत्र हैं लेकिन हम मात्र 2 मंत्रों से भी हवन कर सकते हैं।

1) ॐ प्रजापतये नमः स्वाहा।

2) ॐ सूर्याय नमः स्वाहा।


उपरोक्त समस्त जानकारी विभिन्न माध्यमों से एकत्रित की गई है। ताकि यह जानकारी सभी को एक जगह प्राप्त हो सके। इसी  मंगलकामना के साथ आशा करते हैं यह जानकारी आपके व आपके प्रिय जनों के लिए लाभकारी सिद्ध हो, कृपया इसे लाइक और शेयर करे तथा कमेन्ट के माध्यम से हमे कृतार्थ करे यह अवश्य हमारा उत्साहवर्धन करेगा। 


सेवा का भाव मन में रखें, और उन्नति करते रहें।

आपका आभार। 

(SEWAGROW)  

What is havan? (हवन क्या होता है?)

 “अहं यज्ञ:” इस समग्र सृष्टि के क्रियाकलाप ‘यज्ञ’ रुपी धुरी के चारों ओर ही चल रहे हैं। ऋषियों ने ‘अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः’ (अथर्ववे...